मातृ-शिशु को लेकर हर स्तर पर सावधानी बरती जा रही है। गर्भवती व प्रसूताओं की जांच में किसी तरह की समस्या न आए, इसके लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। रेडियोलॉजिस्ट की संख्या बढ़ाई जा रही है। मशीनें भी लगाई जा रही हैं। जहां सुविधा नहीं है वहां पीपीपी मॉडल अपनाया जा रहा है। ई बाउचर का सिस्टम भी पीपीपी मॉडल का एक हिस्सा है। इससे गर्भवती महिलाओं की जांच निर्धारित समय पर हो सकेगी। उन्हें किसी तरह की समस्या नहीं होगी।
– पार्थ सारथी सेन शर्मा, प्रमुख सचिव स्वास्थ्य
लखनऊ। प्रदेश सरकार लोकसभा चुनाव से पहले गर्भवती महिलाओं को सहूलियत की बड़ी सौगात देने जा रही है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में अल्ट्रासाउंड व अन्य जांच सुविधा उपलब्ध न होने पर उन्हें प्राइवेट जांच केंद्रों पर मुफ्त जांच की सुविधा मिलेगी। इसके लिए गर्भवती को ई-बाउचर दिया जाएगा। इस बाउचर से वह निजी डायग्नोसिस केंद्र पर जांच करा सकेंगी। इसकेलिए स्वास्थ्य विभाग ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से करार किया है। हर महीने करीब पांच लाख महिलाओं को प्रसव संबंधी जांच करानी पड़ती है।
प्रदेश में करीब 873 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। ज्यादातर केंद्रों पर अल्ट्रासाउंड मशीनें लगी हैं। पर, कहीं रेडियोलॉजिस्ट के अभाव में तो कहीं मशीनें खराब होने की वजह से गर्भवती महिलाओं की जांच प्रभावित होती है। उन्हें जांच के लिए निजी केंद्रों का सहारा लेना पड़ता है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग ने नई रणनीति अपनाई है। तय किया है कि सीएचसी में आने वाले मरीज का पंजीयन किया जाएगा।
किसी कारणवश अल्ट्रासाउंड व अन्य जांच नहीं हो पा रही है, तो उसे निजी डायग्नोसिस सेंटर भेजा जाएगा। जांच का खर्च सरकार उठाएगी। इसके लिए आसपास मौजूद निजी डायग्नोसिस सेंटरों को सीएचसी से संबद्ध किया जा रहा है। मरीज को जांच के लिए सीएचसी प्रभारी ई-बाउचर देंगे। मोबाइल पर मिलने वाले इस ई-बाउचर को लेकर मरीज निजी सेंटर पर जाएगा। वहां बाउचर दिखाकर वह जांच करा लेगी। बाद में सीएचसी संबंधित सेंटर को ई-बाउचर के हिसाब से भुगतान करेगा।
ऑनलाइन भुगतान की इस पूरी प्रक्रिया के लिए स्वास्थ्य विभाग ने एसबीआई से करार किया है। इससे गर्भवती महिलाओं की जांच प्रभावित नहीं होगी। मालूम हो कि प्रायोगित तौर पर दो माह पहले इसे लहरपुर, सिधौली और संडीला सीएचसी में चलाया गया। इस दौरान देखा गया कि संबंधित क्षेत्र की गर्भवती की आसानी से जांच हो सकती है। ऐसे में अब इसे पूरे प्रदेश में लागू किया जा रहा है।
आशा कार्यकर्ता गर्भवती महिलाओं का करेंगी पंजीकरण
आशा कार्यकर्ता गांव की महिलाओं के नियमित संपर्क में रहती हैं। वह गर्भ धारण करते ही महिलाओं का ऑनलाइन पंजीकरण करती हैं। यही पंजीकरण इनकी अल्ट्रासाउंड जांच में काम आएगा। यह डेटा स्थानीय पीएचसी-सीएचसी से लेकर महानिदेशालय परिवार कल्याण तक साझा किया जाता है।
5000-6000 रुपये की होगी बचत
निजी डायग्नोस्टिक सेंटर पर एक बार की अल्ट्रासाउंड जांच पर करीब 1000-1200 रुपये जांच होती है। चार से पांच जांच होने पर 5000-6000 रुपये का खर्च होता है। इस सुविधा यह खर्च बचेगा।
हर साल 56 लाख प्रसव
प्रदेश में हर साल करीब 56 लाख से अधिक प्रसव हो रहे हैं। सभी सरकारी अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड से लेकर जांच सुविधा तक निशुल्क है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन गर्भवती महिलाओं की जांच के लिए 20 करोड़ और प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए) में तीन करोड़ 93 लाख रुपये का बजट है। जननी सुरक्षा योजना के तहत भी बजट का प्रावधान है।
क्यों जरूरी है जांच
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 केअनुसार प्रति लाख जीवित प्रसव के आधार पर मातृ मृत्यु दर 167 है, जिसे 2030 तक 70 पर लाने का लक्ष्य है। इसी प्रकार नवजात शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित प्रसवों के आधार पर 28 है, जिसे 2030 तक 12 तक लाने का लक्ष्य रखा गया है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए संस्थागत प्रसव को बढावा दिया जा रहा है। गर्भवती महिलाओं को जिला अस्पताल से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक जांच की सुविधा निशुल्क दी जा रही है। चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक गर्भ के छह से नौ सप्ताह में अल्ट्रासाउंड की जांच की जरूरत होती है। इसके बाद 11 से 13 सप्ताह जरूरत होती है। फिर गर्भावस्था में जरूरत के मुताबिक यह जांच कराई जाती है। नौ माह में करीब चार से पांच बार अल्ट्रासाउंड जांच की जरूरत पड़ सकती है।