डिजिटल डेस्क/लखनऊ। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल का पहला वर्ष 25 मार्च यानी आज पूरा कर रही है। योगी ने 36 साल बाद एक ही मुख्यमंत्री के नेतृत्व में दोबारा सरकार बनाने का रिकॉर्ड तो बनाया ही, पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय संपूर्णानंद के बाद राज्य में सबसे लंबे समय तक लगातार मुख्यमंत्री रहने का कीर्तिमान भी बना दिया। योगी सरकार ने अपने चुनावी वादों को पूरा करने की प्रतिबद्धता भी दिखाई है। लेकिन बदले की राजनीति करने का आरोप भी झेलना पड़ा। चाहे आज़म का किला हो या माफियाओं घर दूसरी बार के कार्यकाल में बाबा का बुलडोजर चला तो अपराधी डर के मारे सरेंडर करते दिखें। अब दूसरी बार सत्ता में आने के बाद सरकार के 1 वर्ष पूरे हो गये हैं क्या उत्तर प्रदेश में विकास हुआ है? क्या सरकार अपने चुनावी वादों को पूरा कर पाई है? आइये जानतें हैं।
सरकारी दावे की मानें तो संकल्प-पत्र के 130 में से 110 वादे या तो पूरे कर दिए गए हैं या अमल के लिए निर्णय हो चुका है। 33.50 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव लाने वाले वैश्विक निवेशक सम्मेलन, जी-20 समिट और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के पर्यटन मंत्रियों की बैठक ने योगी की छवि वैश्विक स्तर की बनाई है। प्रदेश की अर्थव्यवस्था को 10 खरब डॉलर तक ले जाने का रोडमैप भी इसी एक वर्ष में तैयार किया गया है। मगर, वर्ष भर उत्सवी माहौल के बावजूद सरकार के लिए सब कुछ हरा-भरा नहीं रहा। सरकार ने इस एक वर्ष में अनेक चुनौतियों का सामना किया है। ऐसी असफलताएं भी हाथ आईं हैं, जिन्होंने बड़ी-बड़ी सफलताओं के रंग को धूमिल कर दिया। कई स्तर पर चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं, जिनके समाधान पर लोगों की नजरें हैं।
आजम का गढ़ ध्वस्त किया, खतौली ने झटका दिया
सरकार ने एक वर्ष में तीन लोकसभा और दो विधानसभा उपचुनावों का सामना किया। इसमें सियासी तौर पर अहम रामपुर व आजमगढ़ लोकसभा (क्रमश: आजम खां व अखिलेश यादव के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद इस्तीफे से रिक्त सीट पर उपचुनाव) तथा रामपुर विधानसभा सीट (आजम को तीन साल की सजा के बाद सदस्यता जाने से रिक्त सीट) जीत ली। मैनपुरी (मुलायम सिंह यादव के निधन से रिक्त सीट) लोकसभा सीट सपा बरकरार रखने व मुजफ्फरनगर की खतौली सीट सपा की सहयोगी रालोद जीतने में सफल रही। इसी बीच स्वार के विधायक अब्दुल्ला आजम (आजम के बेटे) की सदस्यता रद्द हो गई। इसके साथ ही सरकार ने सपा के मुस्लिम चेहरा रहे आजम के सियासी किले को ध्वस्त कर उन्हें परिवार सहित चुनावी परिदृश्य से बाहर ढकेलने जैसी अकल्पनीय सफलता हासिल की। मगर, खतौली विधानसभा क्षेत्र की अपनी जीती हुई सीट की हार ने सरकार के लिए पश्चिम यूपी में नए समीकरण की चिंता बढ़ा दी है। खतौली सीट भाजपा विधायक विक्रम सैनी को मुजफ्फरनगर दंगों में दो साल की सजा होने के कारण खाली हुई थी। नियुक्ति पत्र बंट रहे, लेकिन शिक्षा सेवा चयन आयोग का पता नहीं भाजपा सरकारों पर सरकारी नौकरियां खत्म करने के सियासी आरोप लगते रहे हैं। योगी सरकार ने इसकी तोड़ में मिशन-रोजगार शुरू किया। नियमित अंतराल पर समारोह कर नियुक्ति पत्र वितरित किए जा रहे हैं। मगर, शिक्षा से जुड़ी भर्तियों को एक छत के नीचे शिक्षा सेवा चयन आयोग के जरिए कराने के अपनी पहली ही सरकार के पहल पर अब तक अमल का इंतजार है। उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष सहित ज्यादातर सदस्यों के पद खाली हैं। लंबित भर्ती की कार्यवाही ठप पड़ गई है। इसी तरह माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो चुका है। टीजीटी-पीजीटी के चयन के लिए विज्ञापन निकालकर फार्म लेने के बावजूद परीक्षा नहीं हो पाई है। लोगों को पता नहीं चल रहा है कि प्रस्तावित शिक्षा सेवा चयन आयोग आगे की भर्तियां करेगा या उच्चतर शिक्षा आयोग व माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन आयोग से पद भरे जाएंगे। लाखों युवाओं के सीधे भविष्य से जुड़े मुद्दों पर सरकारी दुविधा चर्चा का विषय है।
पुरानी पेंशन बन रही बड़ा मुद्दा
कई राज्यों में पुरानी पेंशन बहाल किए जाने के बाद यह मुद्दा भी योगी सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। बिजली कर्मियों के आंदोलन का भी संदेश साफ है कि सरकार और हाईकोर्ट की सख्ती से हड़ताल जरूर टूट गई, लेकिन किसी भी तरह का माहौल बनाने वाला कर्मचारी वर्ग सरकार से खुश नहीं है।