कोरोना से लॉकडाउन: न रोजगार न घर, रोज अंधेरे में पलायन कर रहे सैकड़ों लोग…… किसी तरह पहुँचना चाहते हैं अपने गाँव

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हम पंछी उन मुक्त गगन के, पिजड़ बंद ना रह पाएंगे। कनक तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जायेंगे।।

आर.पी.पी.न्यूज़(नई दिल्ली) आज पूरे देश में लॉकडाउन के बाद कामकाजी गरीब तबके ने दिल्ली छोड़ना शुरू कर दिया है। सिर पर गठरी रखकर बच्चों को गोद में लेकर महिलाएं और पुरुष रात के अंधेरे में पैदल ही दिल्ली बॉर्डर पार करने का प्रयास कर रहे हैं। किसी तरह नोएडा, गाजियाबाद और फरीदाबाद की सीमा में प्रवेश करते ही इनमें खुशी दिखती है। इनमें से कुछ रुककर किसी सवारी का इंतजार करते हैं, जबकि बाकी पैदल ही आगे बढ़ जाते हैं। मानो अब जैसे लगता है ज़िन्दगी थमने लगी हो।

पैदल गाँव जाते लोग

चीन से उत्त्पन्न इस कोरोना वायरस की कहर ने इस तरह आम जन- जीवन को प्रभावित करेगा इसका शायद किसी ने कल्पना कभी ना कि हो, गरीब मजदूरों और भूखे प्यासे स्टेशन और सड़कों पर पैदल चलते लोग आज ये सोच रहे होंगे कि अब फिर कभी किसी जीव को चोट नही पहुंचायेंगे। रोजमर्रा की जिंदगी व्यतीत करने वाले लोग आज इस कदर प्रशासन के आदेशों का पालन करने में लग गए है जैसे इससे उनको कोरेना जैसा संक्रमण नही होगा, मास्क और हाथों में सेनिटाइजर लगा अब सड़क पर भी निकलना चाह रहें है लेकिन करें क्या? पूरे भारत वर्ष में लॉकडाउन जो है।

कोरोना वायरस के खौफ के बीच रात के अंधेरे में हाईवे पर इन दिनों गाड़ियों की भीड़ के बजाय सैैकड़ों पैदल लोगों की भीड़ दिख रही है। पूछने पर इनका कहना है कि जब उनके पास कोई कामकाज ही नहीं है तो दिल्ली में रुकने का कोई मतलब नहीं बनता। बॉर्डर पर पुलिस की चेकिंग से बचने के लिए ये लोग रेलवे पटरियों का भी सहारा ले रहे हैं। उनका कहना है कि किसी तरह वह अपने गांव पहुंच जाएं, जिसके बाद दोबारा नए जीवन की शुरुआत का प्रयास करेंगे।

एनएच-9 पर मंगलवार रात करीब 9 बजे सड़क के दोनों तरफ लोगों की भीड़ दिखी। ये लोग घरों तक पहुंचने के लिए किसी सवारी के इंतजार में थे। कभी कोई ट्रक उनके पास आकर रुकता तो सैैकड़ों की भीड़ एक साथ उस ओर भागती। जिसे उस ट्रक में जानवरों की तरह लदने का मौका मिल गया, वह खुद को खुशकिस्मत महसूस करता है। जिन्हें ट्रक में जगह नहीं मिली, उन्होंने पैदल ही हापुड़ की ओर कदम बढ़ा दिए। कई किलोमीटर तक हाइवे पर केवल लोगों की ही भीड़ देखने को मिल रही है। इन लोगों का कहना है कि रात के वक्त पुलिस का पहरा कम होता है, इसलिए वे पूरे परिवार के साथ घर के लिए निकले हैं। इनमें से ज्यादातर लोग पूर्वांचल से सटे जिलों के हैं। इनमें से काफी लोगों को यह भी नहीं पता कि उन्हें अभी कितने किलोमीटर लंबा चलना है। उनके साथ पूरे जीवन की भी पूंजी है, जिसे वे गठरी में बांधे हुए हैं।

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